Sunday, July 9, 2017

Poem dedicated to me by my would be

जब से गई हो तुम

कुछ बदला तो नहीं
लेकिन सब बदल सा गया है

Coffee में जितनी भी शक्कर डाल दूँ
अलसाहट दूर नहीं होती

चाय वाला रोज़ तुम्हे देख कर खुश हो जाता था
पता नहीं क्यों अब नहीं मुस्कुराता

वो 5 flavour वाला पानी पूड़ी वाला
उसके सारे flavour फीके से हो गए हैं

वो रात को टहलना
तुम्हारे बिना सज़ा सा लगता है

Lake जिसे देख कर तुम्हे शान्ति मिलती है
वो पता नहीं क्यों सूखने सी लगी है

पिल्ले जिन्हें तुम मुझसे रोज़ लड़ के parle g खिलाती हो
अब parle g से उभ गए हैं

वो पीपल जिसे तुम पानी डालने जाती हो
सूखता जा रहा है

वो वक़्त जब तुम रोज़ मिलने आती थी मुझसे
बेमाना सा हो गया है

घडी में बस टाइम बदल रहा है
जीवन में समय नहीं बदल रहा

आ जाओ की किसी को हंसी मिल जाये किसी को स्वाद
किसी को सुख मिल जाये तो किसी को चैन

आ जाओ की मुझे तुम मिल जाओ

और मैं, मैं जैसा हो जाऊं ।

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